कागज़ की नाव
भाषा चेतना की सहज अभिव्यक्ति है, जिसे साहित्य द्वारा समझा ही नहीं जा सकता है; बल्कि भाषा-साहित्य द्वारा समाज को एक उन्नयन दिशा की ओर प्रशस्त भी किया जा सकता है ।
Friday, January 17, 2020
Friday, January 10, 2020
कवि : अभिषेक कुमार 'अभ्यागत' की कविता : बनारस
बनारस
पूछता है
मणिकर्णिका घाट
का पानी
पूछती है
दशाश्वमेध घाट की सीढियाँ
पूछता है काशी का शंखनाद,
पूछती है
बाबा विश्वनाथ मंदिर की
ऊँची - ऊँची स्वर्ण गुम्बदें
घण्टों की टन - टन
संध्या - आरती का धूप - दीप
असंख्य मोक्ष प्राप्त आत्माएँ,
सकरी - आड़ी - तिरछी
बनारस की गलियों से
उसकी, ऊँची - ऊँची अट्टालिकाओं से
कबीर क्यूँ कूच कर गए ?
अपनी फकीरी का झोला उठाए
मोक्षदायिनी नगरी बनारस से
और जा बसे
किंवदंतियों की नगरी
मगहर में।
बनारस हाँ-हाँ बनारस
शिव की नगरी बनारस
कवि केदारनाथ सिंह की कविता वाला
एक टाँग पर खड़ा बनारस ।
- अभिषेक कुमार 'अभ्यागत'
युवा कवि, कथाकार एवं नाटककार
न्यू एरिया, (काली मंदिर गली)
डालमियानगर, रोहतास, (बिहार) 821305
पूछता है
मणिकर्णिका घाट
का पानी
पूछती है
दशाश्वमेध घाट की सीढियाँ
पूछता है काशी का शंखनाद,
पूछती है
बाबा विश्वनाथ मंदिर की
ऊँची - ऊँची स्वर्ण गुम्बदें
घण्टों की टन - टन
संध्या - आरती का धूप - दीप
असंख्य मोक्ष प्राप्त आत्माएँ,
सकरी - आड़ी - तिरछी
बनारस की गलियों से
उसकी, ऊँची - ऊँची अट्टालिकाओं से
कबीर क्यूँ कूच कर गए ?
अपनी फकीरी का झोला उठाए
मोक्षदायिनी नगरी बनारस से
और जा बसे
किंवदंतियों की नगरी
मगहर में।
बनारस हाँ-हाँ बनारस
शिव की नगरी बनारस
कवि केदारनाथ सिंह की कविता वाला
एक टाँग पर खड़ा बनारस ।
- अभिषेक कुमार 'अभ्यागत'
युवा कवि, कथाकार एवं नाटककार
न्यू एरिया, (काली मंदिर गली)
डालमियानगर, रोहतास, (बिहार) 821305
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