अभिषेक कुमार 'अभ्यागत' की कविता ' माँ ' साभार - काव्य कुसुमाकर (संयुक्त काव्य संग्रह),प्रकाशक - त्रिवेणी प्रकाशन सुभाष नगर, डेहरी, रोहतास, प्रकाशन वर्ष - 2018, मूल्य - 105₹
माँ
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बादलों के पार, दूर कहीं दूर
निर्जन, एकान्त,अनन्त पथ पर
'माँ' तुम गईं कहाँ ?
ना चिट्ठी ना संदेश
तोड़ मोह-पाश वात्सल्य का
किस पथ पर, किस दिशा में
हाथ छुड़ा, हो गई ओझल
माँ, तू मेरी स्मृतियों में
सदा बसी रहेगी
तुम्हारी स्मृतियों का
रेखाचित्र, मेरे दृगों में
बार-बार उभर आता है
और, मैं अतीत के वातायन से
झाँकने लग जाता हूँ
तो, तुम सामने खड़ी नजर आती हो
काश ! माँ एक बार
बस एक बार लौट आती
कसक बस इतनी है दिल में
तुम्हे देख लेता, एक बार फिर से
जबकि, मैं यह जानता हूँ
तू, अब न आएगी
किसी के बुलाये
पर, तेरी यादें बार-बार आएँगी ।
- अभिषेक कुमार 'अभ्यागत'
युवा कवि, कथाकार एंव नाटककार
डेहरी आन सोन, रोहतास (बिहार)
माँ
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बादलों के पार, दूर कहीं दूर
निर्जन, एकान्त,अनन्त पथ पर
'माँ' तुम गईं कहाँ ?
ना चिट्ठी ना संदेश
तोड़ मोह-पाश वात्सल्य का
किस पथ पर, किस दिशा में
हाथ छुड़ा, हो गई ओझल
माँ, तू मेरी स्मृतियों में
सदा बसी रहेगी
तुम्हारी स्मृतियों का
रेखाचित्र, मेरे दृगों में
बार-बार उभर आता है
और, मैं अतीत के वातायन से
झाँकने लग जाता हूँ
तो, तुम सामने खड़ी नजर आती हो
काश ! माँ एक बार
बस एक बार लौट आती
कसक बस इतनी है दिल में
तुम्हे देख लेता, एक बार फिर से
जबकि, मैं यह जानता हूँ
तू, अब न आएगी
किसी के बुलाये
पर, तेरी यादें बार-बार आएँगी ।
- अभिषेक कुमार 'अभ्यागत'
युवा कवि, कथाकार एंव नाटककार
डेहरी आन सोन, रोहतास (बिहार)