आज पूरे फ़लक पर है चाँद,
कोई इस चाँदनी की तपन में,
तप रहा है, तो कोई;
इस चाँदनी में सराबोर हुआ है ।
टूट गया तीन सौ सत्तर का किला,
ढ़ह गयी, पैतीस - 'ए' की दीवारें
काले धुएँ से अब तक;
भरा था जो आकाश,
वह धुआँ आज छट गया है,
इतिहास ही नहीं-
पूरा भूगोल बदल गया है ।
एक झंडा, एक नारा, एक हुआ;
हमारे संसद का संविधान,
अब ना होगें पत्थर बाज,
ना होगें, जम्हूरियत के दुश्मन,
मुख्य धारा से जुड़ेगा
अब हर एक कश्मीरी,
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