Sunday, August 11, 2019

अब न होगें पत्थर बाज //कश्मीर के वर्त्तमान स्थिति को बयां करती कविता

आज पूरे फ़लक पर है चाँद, 
कोई इस चाँदनी की तपन में, 
तप रहा है, तो कोई;
इस चाँदनी में सराबोर हुआ है ।

टूट गया तीन सौ सत्तर का किला, 
ढ़ह गयी, पैतीस - 'ए' की दीवारें 
काले धुएँ से अब तक;
भरा था जो आकाश,
वह धुआँ आज छट गया है,
इतिहास ही नहीं- 
पूरा भूगोल बदल गया है ।

एक झंडा, एक नारा, एक हुआ;
हमारे संसद का संविधान,
अब ना होगें पत्थर बाज,
ना होगें, जम्हूरियत के दुश्मन,
मुख्य धारा से जुड़ेगा 
अब हर एक कश्मीरी,
हर किसी की होगी , अपनी एक पहचान ।

                           - अभिषेक कुमार 'अभ्यागत'
                              डेहरी आन सोन, रोहतास (बिहार)

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