Sunday, August 25, 2019

यर्थाथ और आदर्श का एक वेवाक चित्रण - " कलम बोलती है "/ एक पुस्तक समीक्षा/ लेखक - निरंजन कुमार 'निर्भय' ।

निरंजन कुमार 'निर्भय' एक ऐसे शब्द शिल्पी, क्रांतिधर्मी कवि है, जो अपनी कलम से आजाद भारत की ज्वलंत समस्याओं का वेवाक चित्रण करते नजर आते हैं । वह अपने नाम के अनुरूप अपने काव्य संग्रह "कलम बोलती है" ( त्रिवेणी प्रकाशन, डेहरी आन सोन, रोहतास, बिहार, मूल्य 100 ₹ )   में भी निर्भय ही दिखाई पड़ते है । बड़ी ही निर्भीकता से मानव - मन और व्याप्त समाज की समस्याओं का सजीव चित्रण किया है । मुख्यतः कवि बनने के लिए उबड़ - खाबड़ , ऊँच  - नीच, टेढ़े - मेढ़े, कभी सुखा तो कभी दलदली रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है । कवि इन्हीं रास्तों से अपने जीवन में संघर्ष करते हुए आगे बढ़ता है, और अपने संधर्ष के  अनुभवों को बड़ी ही सरलता के साथ शब्दों का जामा पहनाकर एक मजबूत और भड़कीली इमारत खड़ा करता है । जिसके भीतर समाज के कई जटिल से जटिलतम समस्याएं जैसे - सामाजिक ,राजनैतिक ,आर्थिक और धार्मिक प्रश्नों का हल खोज निकालने का हमे रास्ता दिखलाता है । निर्भय जी वह कवि है जो किसी भी प्रश्नों से भागते नहीं है और ना ही वह प्रश्नों से मुँह फेरकर कोई कायरता दिखलाने जैसा कार्य करते हैं ,बल्कि वह रचनाओं में इन प्रश्नों से मात्र लोहा ही नहीं लेते है । वह तो उसका उत्तर पाने की कोशिश में अपनी ऊर्जा खपाते नजर आते हैं । कहा जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण है । यह उक्ति " कलम बोलती है " में पूर्णतः चरितार्थ दिखती है ।
                                   निर्भय जी की पुस्तक कलम बोलती है में मैंने उनक लिखा पुरोवाक् पढ़ा । जिस तरह सृष्टिकर्त्ता  की रचनाओं को इन्होंने अदभुत, विचित्र और आनन्दायक बताया  है । ठीक वैसे ही  निर्भय जी कहते है कि यह पूरा विश्व ही मेरा घर है । इससे इनके हृदय का विशाल रूप रेखा का पता चलता है ।कविवर सुमित्रा नंदन पन्त की पंक्तियों के माध्यम से निर्भय जी स्वयं को वियोगी कवि की संज्ञा देते हैं , जबकि मैं तो इनके काव्य संग्रह को पढते ही वियोगी कवि कहने लगा हूँ ,और उनकी रचनाओं से सत्य भी यही दृष्टिगोचर  होता है ।
' काशी का कबीर ' इस कविता के माध्यम से बड़ी ही सहजता से धर्म के अलमबरदारों पर कुठार अधात किया है और बताया है कि किस प्रकार धर्म का वितंडा खड़ा करने वाले धर्म का मर्म नहीं समझते है । वह समाज को केवल भ्रम के जाल में घुमाते रहते है । संत कबीर के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि धर्म का मर्म समझने वाले पाखण्ड नहीं फैलाते बल्कि पाखण्ड को खण्ड - खण्ड  कर धर्म का सच्चा स्वरूप समाज को दिखलाना चाहते हैं । आदमी की जाति आदमियता होती है और उसका धर्म सम्पूर्ण संसार के लिए किया गया कर्म है ।
                        इस कवि की कविता हमारे अंतर्मन को झकझोर देती है , लगता है कवि समाज की समस्याओं से इतना आहत है कि पूरे समाज को वह बदल देना चाहता है । वह नहीं चाहता है; संसार का कोई भी व्यक्ति भुखमरी, बेरोजगारी ,और अशिक्षा का दंश झेले । वह समाज को एक आदर्श रूप में देखना चाहता है । वह हमारे अंतर्मन को तो झकझोरता ही है साथ- ही - साथ बाहरी समस्याओं से लड़ने के लिए भी उद्देलित करता है । द्रष्टव्य है कवि की चंद पंक्तियाँ -
                            " जबतक विचारों का मंथन कर
                               दृष्टि साफ नहीं करोगे
                                भीतर के शैतान को
                                 पूरी तरह
                                 पराजित कर बाहर के
                              शैतान से नहीं लड़गे  । "
  पुस्तक के भीतर की एक  - एक रचना प्याज़ के छिलके की भाँति है,  जो परत - दर -परत जीवन का एक नया संदेश लिए बैठी है । जितनी ही परत उतरती है, उतना ही जीवन को समझने के लिए एक नया दृष्टिकोण प्राप्त होता है । चाहे वह गज़ल हो या गीत, चाहे नवगीत हो या मुक्त छंद की कविता । सभी रचनाएँ जीवन में एक नये आयाम का द्वार खोलती है । "कलम की नोक " कविता में कलम को जहाँ डराने वाले हैं, वहीं दूसरी तरफ कलम से थर्राने वाले भी हैं । वह तो केवल स्वांग करते हैं तथा कलम को स्वयं से कम आकते हैं ।कलम का भय उन्हें भी सताता है । कलम एक सिपाही की भाँति अपने विरोधियों का दमन भी करती है,  क्योंकि कलम अंतर्मन की आवाज़ है और इसी आवाज़ की हुंकार हैं, कवि निरंजन कुमार निर्भय । इनकी कविताओं में एक परिवर्तन की बयार बह रही है , जो समाज की सभी विपदाओं को अपनी तूफानी वेग में बहा ले जाने को आतुर है और समाज में अमन - शांति स्थापित करना चाहती है ।
जिस प्रकार हीरे की परख एक जौहरी ही जानता है ।वैसे ही साहित्य की परख एक साहित्यकार ही जानता है । यदि " कलम बोलती है " काव्य संकलन प्रकाशित न हुई होती तो ना मैं काव्य पढ़ता और ना ही इसके माध्यम से सामाजिक परिवर्तन का हिस्सा ही बन पाता और ना ही समालोचना लिखने के लिए विवश हो पाता । संपादक ने जिस प्रकार कवि के बिंबों को समझकर जो यथोचित तथा न्यायोचित स्थान दिया है  , तथा प्रकाशन के माध्यम से " कलम बोलती है " का जिस प्रकार प्रकाशन किया है । वह निश्चय ही सराहनीय है । पाठक मेरी समीक्षा को पढ़ने के बाद इस काव्य संग्रह को अवश्य ही पढ़ना चाहेंगे ।


                      - अभिषेक कुमार 'अभ्यागत'
                             ( पुस्तक समीक्षक )
                         डेहरी आन सोन, रोहतास,  (बिहार)
                 

No comments:

Post a Comment