स्वाधीनता की सोंधी महक
जिस माटी में है
आशा की
अवतीत किरणें
साफा बाँधकर आती हैं
मन का अलख जगाने जहाँ
वही देश तो मेरा है ।
हिमालय उदात्त
होकर जहाँ
नदियों को बेटी
कह पुकारता
भाँति-भाँति के
पलाश,
हरसिंगार,
कपूर,
आदि
सुशोभित हैं
अदिति रूप में
लेकर अविरल भाव
ऐसी छवि प्रकृति की मुखरित है जहाँ
वही देश तो मेरा है ।
बोली में विविधता
है, रक्त जहाँ का लाल
हर घर में
रहता है
एक सिपाही
आत्मा विश्वास से भरा
मर्यादा पुरुषोत्तम सा
अपनी
"लौ"
में जलता हुआ
सिकन्दर जैसा विश्व विजेता भी हारा जहाँ
जिस माटी में है
आशा की
अवतीत किरणें
साफा बाँधकर आती हैं
मन का अलख जगाने जहाँ
वही देश तो मेरा है ।
हिमालय उदात्त
होकर जहाँ
नदियों को बेटी
कह पुकारता
भाँति-भाँति के
पलाश,
हरसिंगार,
कपूर,
आदि
सुशोभित हैं
अदिति रूप में
लेकर अविरल भाव
ऐसी छवि प्रकृति की मुखरित है जहाँ
वही देश तो मेरा है ।
बोली में विविधता
है, रक्त जहाँ का लाल
हर घर में
रहता है
एक सिपाही
आत्मा विश्वास से भरा
मर्यादा पुरुषोत्तम सा
अपनी
"लौ"
में जलता हुआ
सिकन्दर जैसा विश्व विजेता भी हारा जहाँ
वही देश तो मेरा है ।
- अभिषेक कुमार 'अभ्यागत'
डेहरी आन सोन, रोहतास,( बिहार )
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