Monday, August 12, 2019

सावन की पहली बूँद/ यह कविता सावन की रिमझिम फुहारों में आपके मन को भीगा देगी

सावन की पहली बूँद गिरी,
सुधा बनकर,
चटकी,
कली,
डालों पर,
इंद्रधनुष बनकर  !

काले नभ की किरणें;
गरजकर कहती ,
उषा की लाली की;
एक ना सुनती ,
अपने साथ निरंतर लेकर बरसती ,
समृद्धि और बदहाली ।

थोड़ा नाद ले,
थोड़ा हिम ले,
थोड़ी सुरभि ले,
थोड़ा धूप-धाव ले,
एक साथ बरसती दामन में-
थोड़ा-थोड़ा भरकर  !

सावन की पहली बूँद गिरी,
सुधा बनकर,
चटकी,
कली,
डालों पर,
इंद्रधनुष बनकर  !

                        - अभिषेक कुमार 'अभ्यागत'
                          डेहरी आन सोन, रोहतास, (बिहार)

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