Sunday, July 19, 2020

हिन्दी काव्य धारा का सहज सरस समकोण कवि - बनाफर चन्द्र

#पुस्तक #समीक्षा
हिन्दी काव्य धारा का सहज सरस समकोण कवि -  बनाफर चन्द्र 
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मैं हवा में नहीं 
ज़मीन पर रहता हूँ 
लेकिन नज़र ज़मीन से आकाश तक 
होती है 
इस आपाधापी 
और जीने मरने की रफ्तार में 
टिकाये हुए हूँ अभी तक पाँव  ।

बनाफर चन्द्र (1950-2017) का परिचय आज भले हीं स्मृति शेष कवियों में होना सुनिश्चित हो चुका है । पर उनका हिन्दी साहित्य से यूँ चले जाना यथोचित ही दुःख की बात है । उनका गुजरना मात्र दैहिक ही था, उनके साहित्य का गुजरना यह कहना मानों उनके साहित्य के साथ अन्याय करने जैसा है । देह तो नश्वर है, पंचभूत है । इसका अंत किसी कवि की कविता का अंत कदाचित नहीं हो सकता । कवि अपनी रचना-धर्मिता के कारण कभी नहीं मरता बल्कि वह अमरत्व को प्राप्त होता है । बनाफर चन्द्र का काव्य-संस्कार देशज होने के साथ-साथ रचना के धरातल पर तथा रचना की कसौटी पर पूर्णतः खरा उतरते दिखाई पड़ता है । कविता बहुत पारदर्शी विधा है । केवल लिख देने मात्र से कवि होना होता तो अनेक लोग कवि हो गए होते । विषय वस्तु और विचार की शुद्धता का दुर्गामी दृष्टि रखने वाला न्याय का अनुचर जिसमें कथन की अनूठी भाव-भंगिमा का अनुपम आदर्श विधमान हो वही कवि है तथा उसके शब्द कविता है  ।
                           बनाफर चन्द्र कथा से कविता, कविता से अनुगूँज होती गाँव घर, धूल, धुआँ और आँधी, विरसा प्रेत,मिट्टी की खुशबू, तुम माँ हो जैसी काव्य संरचना द्वारा रूचिबोध की सीमा में संसार के एकान्तवास से खींचकर हमें समाजिक बनाती है तथा बेगाने एवं कठोर समय की सच्चाईयों का पर्दाफाश भी करती है। बनाफर चन्द्र की जो कविता-संग्रह मुझे पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ वह उनकी ताजातरीन एवं आखिरी काव्य-संग्रह 'कविता का वसंत' शीर्षक से तथा त्रिवेणी प्रकाशन सुभाष नगर डेहरी से प्रकाशित है, जो उन्होंने मुझे हस्तगत कर सस्नेह भेंट की थी। हिन्दी काव्य-साहित्य में आख्यान की धुरी अर्थात् उन प्रतिबिंबों को जिनसे हमारा समाज आहत है, विभाजित है, उन्हें धुरीहीन बना देने की जो आकुलता जैसा साहस बनाफर चन्द्र की कविताओं में दिखता है। इस दृष्टि से उन्हें हिन्दी काव्य-संरचना का अग्रदूत कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी। उनकी कविताएँ अपनी रचना-विन्यास में प्रगीतधर्मी है। इनकी रचनाएँ व्यक्ति तल को छुता एक अनगढ़ साय की भाँति संबल बनकर हमें पथ-प्रस्त करती दिखाई पड़ती है  । वह समकालीन कवि होते हुए वयक्तिमान को न्यारेपन के कारण आकृष्ट करते हैं । धारा एवं प्रवाह से अलग एक नयी राह खोज निकालने में सफल नज़र आते हैं । उनकी कविता अतुकांत की राह पर चलकर जीवन के मर्म को स्पर्श करती है । 'बच्चे की नींद', 'ज़मीन', 'फिदरत', 'मेहनती हाथों की हथेली पर', 'घर', इनकी प्रमुख कविताएँ है जो 'कविता का वसंत' काव्य-संग्रह में संकलित है । वे लिखते हैं  -

'जो पक रही है पतीली में
वह खिचड़ी नहीं है 
जो सिक रही है तावे पर 
वह रोटी नहीं है 
एक ख्याल है एक विचार है  ।'

बनाफर चन्द्र जी अपनी इस कविता के माध्यम से अपने विचारों का जो स्थान दिया है । वह सत्य हीं खिचड़ी नहीं है, ना हीं रोटी है । वह मर्माहत है समाज के उस वर्ग के हाथों जो धनिक तो है, पर हृदयहीन है । उसे किसी की भूख और गरीबी से कोई सरोकार नहीं है । बच्चा भूखे पेट माँ की गोद में कुलबुलाते सो जाता है, चूल्हे की ठंडी राख देखते-देखते । वह संवेदना व्यक्त करने के स्थान पर अट्टहास करता है, उसकी दारूण दशा पर । यह देख कवि की कविता धरातल पर रखी नज़र आती है । बनाफर चन्द्र अपनी कविताओं में जो चित्रण प्रस्तुत करते हैं, वह यर्थात् की ज़मीन पर खिंची गई है । कल्पणिक कथा को माध्यम रूप देकर मानव मन की वेदना और हर्ष को रेखांकित करती है तथा हृदय को छुता है । जिसका रेखांकन ही कविता का रचनात्मक उद्देश्य है । वह अपने विचारों का प्रस्तुतिकरण जिस भाॅति कविता में करते हैं, उनका शब्द-शिल्प, देखने-समझने के तरीके को ही नहीं उनके अनुभव व व्यवहार के तरीके को भी संचालित करती है । जितने सहज और सरल तरीके से वह अपनी बात कह देते हैं, दरअसल उतनी सरल है नहीं । सामान्य अर्थों में सरलता और आडंबरहीनता धारण कर हर तरह के रचाव-बनाव से संयुक्त उनकी रचना अकविता के दलदल से हिन्दी कविता को बाहर निकालती है । वह समकोण द्रष्टा वाले ऐसे जनकवि हैं, जिसकी आलोचना अपनी निष्पक्षता के कारण आलोचक को कोई स्थान नहीं देता है ।                                राजनीतिक चेतना से सामाजिक बदलाव तक, मानव जाति से प्रेम और सामाजिक मूल्यों की सर्वोपरिता तक वह समरूपता धारण किए सामाजिक चेतना के हुंकार हैं ।
                        उनकी एक कविता मेरे भीतर प्रश्नों का भवर-जाल बुन देती है और मैं उन प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए गोते लगाने लगता हूँ । वह प्रश्न मुझे उद्देलित करते हैं सोचने पर विवश करती है । कविता अपने गहरे अर्थों को समेटे भूत, भविष्य और वर्तमान के चित्र जो उकेरे हुए है । वह साधारण प्रश्न नहीं है । बुद्धिजन का प्रश्न है । हमारी सभ्यता, संस्कृति, संस्कारों की आत्म-विवेचन का प्रश्न है । हमारे उत्तरोत्तर विकास और ह्रास का प्रश्न है । यह हमारे जीवन से जुड़ा सबसे बड़ा सवाल है । कवि अपनी कविता में कहता है  -

' पाताल में 
लग रहें हैं फल
आकाश में 
उगाई जा रही है सब्जियाँ
गमले में 
बोये जा रहे हैं धान गेहूँ
मटर टमाटर चना और फूल '

                  बनाफर चन्द्र एक छोटे से कस्बे बिहार प्रांत के रोहतास जिले के श्री रामपुर से निकलकर मध्य प्रदेश के भोपाल भेल में सेवारत होने के उपरांत हिन्दी साहित्य की उर्वर खेती करते हुए अखिल भारतीय दिव्य सम्मान और पुरस्कार 2015, रेणु सम्मान,  ज्योतिबा फूले सम्मान,  तुलसी सम्मान,  इकावन हजार रूपये का भेल कार्पोरेट पुरस्कार अर्जित किया । इतना ही नहीं साहित्यिक उपलब्धियों के आधार पर अन्य कवि अथवा लेखकों का उत्साह वर्धन भी करते रहे हैं । इस उत्साह वर्धन की कड़ी में बिहार प्रांत के रोहतास जिले के सोन नद के तट पर बसा शहर डेहरी-ऑन-सोन के प्रख्यात भोजपुरी और हिन्दी के मूर्धन्य एवं यशस्वी कवि, कहानीकार, नाटककार एवं उपन्यासकार राम लखन 'विधार्थी' को अपने देहावसान के दो दिन पूर्व साहित्य संगम संस्थान द्वारा एक साहित्यिक गोष्ठी तथा आयोजन में पाँच हजार रुपये का नगद धन राशि देकर उनके साहित्यिक जीवन की मंगल कामना करते हुए उनका उत्साह वर्धन किया । 
बनाफर चन्द्र जी की रचना ग्राम के साहित्यिक कृत्तियों में बीता हुआ कल, सवालों के बीच,  काला पंछी,  धारा,  ज़मीन,  बस्ती और अंधेरा,  अधूरा सफ़र (उपन्यास), पापा! तुम पागल नहीं हो, अपना देश,  मटमैला आकाश (कहानी संग्रह), सच के आगे भाग- 1,2,3 (आत्मकथात्मक), सहर के लिए,  चाँद सूरज (गज़ल संग्रह), उसकी डायरी (कहानी संग्रह) तथा कविता का वसंत प्रमुख है  ।


● अभिषेक कुमार 'अभ्यागत'
       पुस्तक समीक्षक
    डेहरी-ऑन-सोन, रोहतास बिहार ।




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